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परिचय

स्वैच्छिक और खुली सदस्यता।

देश एवं प्रदेश में सहकारिता आन्दोलन वर्ष 1904 में जनसाधारण विशेष रूप से ग्रामीण कृषकों के आर्थिक विकास हेतु अल्पकालीन फसली ऋण से प्रारम्भ हुआ था। उस समय सहकारिता का मूल उद्देश्य कृषकों को फसल उत्पादन हेतु उचित ब्याज दर/शर्तों पर ऋण उपलबध कराकर उन्हें महजनों के चंगुल से मुक्त कराना था। कालान्तर में अल्कालीन ऋण के साथ-साथ उर्वरक बीज वितरण, प्रक्रिया इकाई/शीतगृह संचालन, उपभोक्ता वस्तुओं का वितरण, दीर्घकालीन ऋण वितरण, श्रमिकों का संगठन, दुग्ध विकास, गन्ना, उद्योग, आवास हथकरघा विकास आदि कार्यक्रम भी सहकारी समितियों के माध्यम से प्रारम्भ हो गये।

इस प्रकार सहकारी आन्दोलन/कार्यक्रमों का क्षेत्र विस्तृत एवं व्यापक हो जाने के कारण निबन्धक, सहकारी समितियों का अधिकार अन्य नौ विभागों यथा-गन्ना, उद्योग, खादी ग्रामोद्योग, आवास, दुग्ध, हथकरघा, मत्स्य, रेशम एवं उद्यान विभाग के अधिकारियों को भी प्रदान कर दिया गया है। सहकारी समितियों का प्रबन्ध लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, जिससे जन सहभागिता को बढ़ावा मिलता है।

सहकारिता के सिद्धान्त-

  • स्वैच्छिक और खुली सदस्यता।
  • प्रजातांत्रिक सदस्य-नियंत्रण।
  • सदस्यों की आर्थिक भागीदारी।
  • स्वायत्ता और स्वतंत्रता।
  • शिक्षा प्रशिक्षण और सूचना।
  • समितियों में परस्पर सहयोग।
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कार्यालय - निदेशक,सहकारी समितियां एवं पंचायत लेखा परीक्षा लखनऊ